मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

                                        कृष्ण की आलोचना...

दुनिया तुझको पूजे कृष्ण
प्रेम का तू प्रतिक कहलाया
पर मैं तूझको मानू कैसे
क्या तू है यकीन के क़ाबिल
         राधा से तूने प्यार किया
         अपनाया तूने रूकमणी को
        राधा को इंतज़ार दिया
        ख़ुद बस गया महलों में
कृष्ण बता तूने क्या
राधा से नहीं की वंचना
प्रेम का मतलब समर्पण है
तो तू क्यों नहीं हुआ समर्पित
            कृष्ण क्या तेरा प्रेम भी
           समाजिक मर्यादाओं में था बंधा
           कृष्ण तूने कहा सबकुछ मैं
            फिर क्यों ऐसा खेल रचाया
प्रेम का अर्थ ज़ुदाई क्यों
समझौता क्यों जीवन भर
कृष्ण तूझे मानू कैसे
सच कहते  है तू है झलिया
राधा-कृष्ण को प्रेम का नाम दिया
 रंग में रंगे लाखों के संग !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें