शुक्रवार, 2 मई 2014

                         प्यार हुआ बाजार हुआ !
इश्क वो बला है जो उम्र की दीवार तोड़कर भी दिल में दाखिल हो जाता है। कहते भी हैं.. ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन...। जन्म के बंधन का तो पता नहीं पर उम्र की सीमा पर जरूर कुछ कहा जा सकता है..। मीडिया में प्यार के चर्चे रोज़-रोज़ तो होते नहीं और वो भी चुनावी मौसम में..। ऐसे में कांग्रेस के बयान बहादुर नेता दिग्विजय सिंह की इश्क का राज सरेआम होने से इस चुनावी तपिश में लोगों को थोड़ी सी राहत तो ज़रूर मिली है..। लोग थकने लगे थे चुनावी खबरों की ओवरडोज से..। आए दिन नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप का तमाशा देखते-पढ़ते लोग पकने लगे थे..। ऐसे में दिग्गी और अमृता राय का प्यार ठंडी हवा के झोंके जैसी राहत पहुचा गया...। इसी बहाने सोशल मीडिया, जिस पर सिर्फ मोदी और राहुल की जंग छिड़ी है, वहां दिग्गी राजा और अमृता राय की आलिंगन भरी तस्वीरों ने कई आंखों को सुकून तो पहुंचाया ही है...।
माफ कीजिएगा, पर मेरा कोई हक़ नहीं बनता कि किसी की निजी ज़िंदगी को इस तरह पेश करूं, मगर इंसानी फितरत है लोगों की जिंदगी में ताक-झांक करना। खासकर तब जबकि वो शख्स न सिर्फ पूरे देश में एक जाना पहचाना चेहरा हो, बल्कि कहीं न कहीं, कम या ज्यादा, सही या गलत, उसका रिश्ता देश के सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों से भी हो। जाहिर है ऐसी छवि वाले नजीर पर चर्चा लाजिमी हो जाती है। प्यार, इश्क या मोहब्बत, चाहे जो कह लीजिए, ये है बला की चीज। प्यार को पवित्रता के साथ जोड़ा गया है। प्रेम को ईश्वर का प्रतीक कहा जाता है और मोहब्बत दो आत्माओं के मिलन का। विडंबना ही सही पर ये हमारे समाज का कटू सच ही है कि जहां प्रेम को अपराध मानकर प्रेमी युगलों की हत्या कर दी जाती है, उसी समाज में लोग राधा-कृष्ण की प्रेमलीला की पूजा करते नहीं थकते।
खैर! फिलहाल बात दिग्गी राजा की हो रही है तो ये जानना भी जरूरी हो जाता है कि उनका प्यार है क्या चीज?  वैसे ये कहना मुश्किल है कि जीवन के उत्तरार्ध में अपने जीवनसाथी के बगैर ये नया और अप्रत्याशित प्यार दिग्विजय सिंह के आकर्षण का नतीजा है या फिर मिस राय की राजनीतिक महत्वकांक्षा की अमरबेल जिसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं।
 
हालांकि सियासत में अब ऐसी प्रेम कहानियां बहुत अनोखी भी नहीं रहीं। हरियाणा के उपमुख्यमंत्री रह चुके चंद्रमोहन और वकील अनुराधा बाली की इश्किया को ज्यादा वक्त नहीं हुआ..। लंबे अरसे तक मीडिया में छाए रहे उस प्यार की इंतिहा तो देखिए कि धर्म परिवर्तन से लेकर ब्याह रचाने तक के ऐलान के बावजूद चांद मोहम्मद और फिजा का अफसाना एक दर्दनाक अंजाम से ज्यादा कुछ नहीं बटोर पाया।
राजनेता अमरमणि त्रिपाठी और कवियत्री मधुमिता का प्रेम प्रसंग भी अभी जहन से ज्यादा दूर नहीं हुआ है। इसका नतीजा भी सुखद नहीं रहा। गर्भवती मधुमिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई और उसके पीछे भी अमरमणि की ही साजिश बताई गई।
शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की हालिया प्रेमकथा तो शायद ही कोई भूला होगा। पहले प्यार और फिर शादी का चोला पहनने के बावजूद रिश्ते की फितरत नहीं बदली। थरूर की जिंदगी में पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार ने एंट्री मारी और अंजाम एक बार फिर वही। सुनंदा पुष्कर का बेजान जिस्म होटल के कमरे में पड़ा मिला और मौत के पीछे का सच अभी भी सियासी गलियारों में अपना वजूद तलाशता फिर रहा है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता रह चुके एन डी तिवारी के प्यार के किस्सों पर तो पूरी किताब भी कम पड़ जाए। बुढ़ापे में बेटे को अपना नाम देने के मुद्दे पर जमकर बदनाम होने और कानूनी दांवपेंच में शिकस्त खाने के बाद तिवारी जी का अदृश्य प्रेम अवतरित तो हुआ पर उसके पीछे की मजबूरी समझना भी ज्यादा मुश्किल नहीं।
राजस्थान के दिग्गज जाट नेता महिपाल मदेरणा के विवाहेत्तर रिश्ते का जिक्र भले ही यहां बेमानी लगे पर नतीजे के पैमाने पर मायने तो इसके भी कम नहीं..। पेट, प्यार और पाप की इस हकीकत में भी भंवरी देवी को जान गंवानी पड़ी और शक की सूई अभी तक कानूनी नुक्तों में ही उलझी हुई है। 
हालांकि सियासी महत्वकांक्षाओं की डोर में बंधी इन नाकाम प्रेम कहानियों से इतर कुछ रिश्ते ऐसे भी रहे जो पूरी शिद्दत से मंजिल ए मकसूद तक पहुंचे भी पर ज्यादातर किस्से असमय ही काल की भेंट चढ़ गए। शायद मोहब्बत में मौकापरस्ती का यही अंजाम होता है।

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