सोमवार, 28 अप्रैल 2014

                                                                  बाबा रे बाबा


सियासत में जो लोग आपस में बदजुबानी करते है, एक दूसरे के चरित्र का हनन करते है, उनकी बात तो फिर भी समझ में आती है, मगर उन बाबाओं का क्या जो समाज और चरित्र निर्माण की बातें तो खूब करते हैं, आए दिन समाज को नैतिकता की पाठ पढ़ाते भी दिख जाते हैं, ऐसे में जब बाबाओं के बोल बदज़ुबानी की सारी हदें पार कर जाएं तो ये सोचने पर जरूर मजबूर होना पड़ता है कि गेरूआ वस्त्र के पीछे खड़ा आदमी किस श्रेणी का है। बाबा रामदेव जो बतौर योग गुरू लोगों को योग के फायदों के बारे में बताते है, योग से रोगों के इलाज करने का दावा करते नजर आते हैं, लेकिन इनकी ज़ुबान जो बदज़ुबानी की सारी हदें पार कर चुकी है, उसका क्या इलाज है? बीजेपी के बजाए उसके पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के प्रचार करने के लिए बाबा इस लोकसभा चुनाव में बेहद सक्रिय नजर आ रहे है। इनकी सक्रियता इतनी ज्यादा है कि वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लुटेरी बहु और राहुल गांधी के शादी-शुदा ना होने पर मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि राहुल को कोई लुगाई नहीं मिल रही है, इसलिए वो दलितों की बस्ती में हनीमून मनाने जाते है। बाबा ने ऐसे से ना सिर्फ राहुल को निशाना बनाया है, बल्कि कहीं ना कहीं दलित बस्ती में रहने वाली लड़कियों को भी सरेआम बदनाम किया है। ये वो बाबा है जो कालेधन और भ्रष्टाचार के लिए आवाज़ उठाते आए दिन दिख जाते हैं और रामलीला मैदान में जोर-शोर से भूख हड़ताल भी कर चुके हैं लेकिन यही बाबा राजस्थान के अलवर में एक प्रेस कॉफ्रेंस में बीजेपी के साधु नुमा नेता चांद नाथ के साथ कालेधन को लेकर बात करते दिख जाते है और उनसे कहते है कि "बावले हो गए हो क्या, ये बातें यहां मत करो"। साफ जाहिर है कि कहीं ना कहीं कालेधन को बढ़ावा देने में बाबा जी का भी हाथ है.
                                                 ऐसा नहीं की राजनीति में अकेले बाबा रामदेव की सक्रियता नजर आती है। ख़ुद को मोह-माया और दुनियादारी से दूर रखने का दावा करने वाले ऐसे कई बाबा है जो राजनीति में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सालों से सक्रिय भूमिका में नजर आते रहे हैं। कई बाबाओं ने तो बाकायदा अपनी राजनीतिक पार्टी भी बनाई जिसमें एक नाम संत स्वामी करपात्री जी महाराज का भी है जिन्होंने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद पार्टी बनाई। ये पार्टी 1952 के चुनाव में तीन लोकसभा सीटें और 1962 में भी दो लोकसभा सीट पर जीती। इतना ही नहीं कुछ राज्यों में इस पार्टी को विधानसभा सीटें भी मिली लेकिन बाद में यह पार्टी अखिल भारतीय जनसंघ मे मिल गई। दूसरा नाम जयदेव गुरू जी का है। मथुरा के बाबा जो 80के दशक में उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय बाबाओं में से एक थे। इनका नारा था "सतयुग आएगा"। जयदेव बाबा को भी राजनीति में आने का मोह चढ़ा और उन्होंने दूरदर्शी पार्टी बनाने का एलान कर दिया। मगर बाबा का जयकारा लगाने वाले लोग, उनके प्रवचनों में हुजूम लगाने वाले लोगों ने ही बाबा की पार्टी को स्वीकार नहीं किया और यह पार्टी खुद ब खुद समाप्त हो गई। हालांकि जयदेव बाबा अब इस दुनिया में नहीं है मगर उनकी अकूत संपत्ति को लेकर विवाद जारी है। बाबा महेश योगी, इस नाम से भी काफी लोग वाकिफ होंगे। इनको भी राजनीति में आने की महत्वाकांक्षा हुई तो अंतर्राष्ट्रीय नेचुरल पार्टी का ऐलान कर दिया। भारत में इनकी पार्टी का नाम अजेय भारत पार्टी था पर वो चुनाव में सिर्फ एक उम्मीदवार को ही संसद भेज पाई।  अजेय पार्टी का हश्र भी वहीं हुआ जो बाकी बाबाओं की पार्टियों का हुआ। हालांकि महेश योगी जी का संबंध तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के साथ बताया जाता था। आध्यात्म गुरू के नाम पर इन्हें शांतिदूत बनाकर विश्व भ्रमण के लिए भी भेजा गया। महेश योगी बाबा के पास भी करीब 40 लाख डॉलर से ज्यादा की संपत्ति थी। इनका काम भी कालेधन को सफेद धन में बदलने का होता था।
                                इन सब बाबाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रियता हासिल करने वाले बाबाओं में एक नाम चंद्रास्वामी का भी रहा है। चंद्रास्वामी, जिनके कदमों में कई नेताओं ने सिर नवाया। 90 के दशक में भारतीय राजनीति में चंद्रास्वामी की तूती बोलती थी। तंत्र-मंत्र में माहिर चंद्रास्वामी राजनीति में बड़े से बड़े फंसे काम को चुटकी बजाते हल करवा देते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लेकर पीवी नरसिम्हाराव तक चंद्रास्वामी के भक्तों की सूची में कई बड़े सियासी नाम शामिल थे। आरोप तो चंद्रास्वामी पर कुख्यात अपराधियों के साथ सांठगांठ के भी रहे। फेरा (फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट) के आधा दर्जन से ज्यादा मामला चंद्रास्वामी पर दर्ज है। हालांकि चंद्रास्वामी गुरू बनने से पहले राजनीति का स्वाद चख चुके थे। नरसिंह राव जब आंध्र प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब उन्होंने चंद्रास्वामी को जिनका नाम तब नेमि चंद्र जैन हुआ करता था, हैदराबाद युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया था पर चंद्रास्वामी राजनीति छोड़कर तंत्र-मंत्र की साधना में लग गए। नरसिंह राव के जमाने में तो चंद्रास्वामी को लोग सुपर प्रधानमंत्री के नाम से भी जानते थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के वोट खरीदने के लिए चंद्रास्वामी ने कैप्टन सतीश शर्मा के साथ मिलकर अभियान भी चलाया जो कि बाद में अदालत में साबित भी हो गया। चंद्रास्वामी के बुरे दिन तब से शुरू हुए जब वो कांग्रेस से पंगा ले बैठे। चंद्रास्वामी का नाम राजीव गांधी के हत्या में भी सामने आया और वो जेल के चक्कर भी काट आए है लेकिन आज भी उद्योगपतियों से लेकर फिल्मी कलाकारों तक उनके भक्त की सूची अभी भी बहुत लंबी है।
                                                              स्वामी अग्निवेश ने हरियाणा में राजनीति की और 1979-1982 तक हरियाणा के शिक्षा मंत्री रहे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अग्निवेश स्वामी का चेहरा कई बार टीवी चैनलों और अखबारों में बयान देते दिख जाता है, मगर इनपर भी छोटे बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराने के आरोप लग चुके हैं। बाबा योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से बीजेपी के सासंद हैं। इन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नाम से एक सेना भी बना रखी है। राजनीति में आने से पहले योगी आदित्यनाथ गोरखपुर मंदिर में महंत थे। 1998 से योगी आदित्यनाथ गोरखपुर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्व का चेहरा माने जाते हैं। कई मामलों में इनका नाम सामने आया है। भगवा वस्त्रधारण किए एक संन्यासिन भी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। वो उमा भारती हैं जो कई मुद्दों पर विवादों में बनी रही हैं।
                                                               इनमें अभी कई और ऐसे नाम हैं जो राजनीति में तो बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं पर अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका जरूर अदा करते हैं। आसाराम बापू भी इन मे से एक हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी इनके भक्त हैं और आसाराम के जेल जाने पर बीजेपी की तरफ से संवेदना जताने वालों की भी कमी नहीं थी। ये है राजनीति की कशिश जो हर तबके को अपनी ओर खिंचती है। मोह-माया त्यागने वाले बाबा भी इसकी मोह से नहीं बच पाते। सवाल ये है कि आखिर इन बाबाओं को राजनीति में घुसने का मौका कैसे मिल जाता है? कैसे वो जनता को धोखा देते हैं। राजनीति में आकर भी इन बाबाओं का बदलाव का कोई इरादा नहीं होता। वो तो बस रूपयों की मोहमाया के संग आते है या फिर राजनीतिक दलों के साथ सांठ-गांठ करते हैं ताकि इनका काला-धन सफेद हो सके। अजीब विडंबना है कि जो देश साधु संतों के त्याग और ईमानदारी के लिए विश्वभर में जाना जाता है, उस देश में अब ज्यादा मूंछ दाढ़ी वाले बाबाओं की पहचान धोखाधड़ी के लिए ही बनकर रह गई है। सवाल एक बार फिर वहीं है कि बार-बार मीडिया इन बाबाओं का पोल खोलती है फिर भी इनका रसू कम होने का नाम क्यों नहीं लेता। इनके प्रवचनों और शिविरों में अभी भी लाखों की भीड़ का आना हमारी समझ और चेतना पर सवाल तो खड़े करती ही है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें