मंगलवार, 17 जनवरी 2012

साढ़े तीन साल...महुआ के साथ

साढ़े तीन साल के करियर का जनवरी 2012 में समापन हो गया...मीडिया लाइन की पहली जॉब का अंत...पहले जॉब का साथ कुछ इसतरह से छुटेगा..सोचा नहीं था...मैं खुद अपने हाथों से इस्तीफा टाइप करके जॉब बदलूंगी ये तो सोचा था..मगर बिना किसी कंपनी को ज्वाइन किये...मैं अपना जॉब छोड़ दूंगी ये कल्पना कभी नहीं की थी...वक्त और हालात कुछ इस कदर बन गये थे कि मुझे अपने जॉब को छोड़ना पड़ा...मगर अब क्या...जब मेरे पास जॉब नहीं...तीन साल से ज्यादा बिना रूके..बिना थके काम करने की आदत पड़ जाने के बाद घर पर बैठना थोड़ा खलता है...महुआ न्यूज़...मेरी पहली नौकरी...कई बेहतरनी यादों और कई डरवाने यादों को संजोया हुआ मेरे साथ आया हैं...जो की हमेशा मेरे साथ रहेगा...मैंने यहां कई ऐसे लोगों के साथ काम किया है..जो बेहद ही काबिल थे...अपने आप में ज्ञान से परिपूर्ण...बहुत कुछ सीखने को मिला...कहते हैं ना अपने आसपास से हमेशा सीखना चाहिए...मैंने हमेशा यही किया...जिनसे मैंने सबैसे ज्यादा सीखा...जो मेरे आर्दश है...जिनकी तरह मैं बनना चाहती हूं...वो हैं राकेश यादव...सच में मैंने महुआ न्यूज़ ज्वाइन करने से पहले उन सा इंसान कभी नहीं देखा...बेहद ही शांत..तीन सालों में मैंने आजतक उन्हें गुस्सा करते हुए नहीं देखा...हमेशा बेहद ही शांत रहते थे...चाहे कितना भी तनाव का माहौल हो..चाहे मैं कितनी बड़ी गलतियां करू..बस समझा के छोड़ दिया करते थे...तेज आवाज तो मैंने कभी सुनी ही नहीं...उनकी स्क्रिप्टिंग का कोई जोड़ नहीं था...चाहे वो किसी भी विषय पर क्यों ना हो...दो साल से ज्यादा मैं मंथन प्रोग्राम में उनके साथ काम किया...और आज मेरे पास हर विषय के स्क्रिप्टिंग का खजाना है...जो उन्होंने लिखा है...वो हमेशा मेरे लाइफ में बने रहेंगे...राजेश सिंह...हमारे प्रोग्रामिंग हेड...बहुत ही अच्छे है...फ्रेडली...हमेशा काम करने वाले इंसान...इनसे भी बहुत कुछ सीखा मैंने...पर जो चीज मुझे याद रहेंगी...वो है मीडिया लाइन की पहली डांट जो मैंने इनसे सुनी थी...क्यों सुनी थी...क्या उसमें मेरी गलती थी...ये सवालात मेरे मन में हमेशा रहेगी...क्योंकि जिस वजह से मैंने वो डांट सुनी थी...वो बेहद ही बेतुकी थी...मगर हो सकता है सर की नजरों में वो बहुत बड़ी हो..खैर ये मेरे जीवन का पहला एक्सपिरियेंस था...वैसे सर बहुत ही अच्छे थे...क्योंकि वो अपने काम को परफेक्टली करते थे...अंशुमन तिवारी..महुआ चैनल के हेड...इनसे मेरा सामना बहुत ही कम हुआ...मगर अंशुमन सर बेहद ही अच्छे थे...बहुत ही प्यार से मिलते थे..और मुझे तो हमेशा छुटकी नीतू कहा करते थे...सर की स्क्रिप्टिंग भी बेहतरीन होती थी...ओपी सर...पूरा नाम आज तक नहीं पता..पर ओपी सर आउटपुट हेड..ओपी सर से मैंने सीखा कभी ना हार माननेवाला गुण...टेक्निकली सर बहुत ही साउण्ड थे...कोई भी टेक्निकल काम को कर सकते थे...हालांकि इनसे भी मेरा संपर्क ज्यादा नहीं रहा..ये तो सीनियरों की बात रही..अब मैं अपने कलिग यानी अपने हम उम्र की बात करू..पूजा..मेरी सबसे अच्छी दोस्त..महुआ न्यूज की एक मात्र सहेली जो मेरे साथ ताउम्र रहेगी...मेरी तरह पर थोड़ी सी अलग..मैं महुआ में थोड़ी सी रिजर्व रहा करती थी सिर्फ काम से मतलब..पर पूजा थोड़ी से ज्यादा बोलने वाली हर किसी से इसकी बातचीत होती थी...पूजा के साथ रहकर मैं जो सबसे बुरी आदत सीखी वो है चाय पीने की...वरना मैं चाय पीती ही नहीं थी..मगर पूजा दिल की इतनी साफ थी कि जो दिल में है वही जुबां पर चाहे वो अच्छी हो या बुरी..यहीं बात यहां कुछ लोगों को बुरी लगती थी...मगर वो मेरे लिए बेहद ही खास थी और रहेगी...हिमानी...महुआ न्यूज़ की मॉडल..लटके झटके वाली..मगर हिमानी काम में बेहद ही तेज..मेरी दोस्ती भी हिमानी से रही...मगर वो उसतरह से नहीं ढल पाई जो आज मेरा पूजा के साथ है...क्योंकि हिमानी बेहद ही दिखावती थी..जो की मुझे नहीं पसंद था..पर वो भी मेरे यादों से जुड़ी एक कड़ी है...शिखा सिंह...मैं इन्हें दीदी कहती हूं..और ये मुझे बहन मानती थी...शिखा दीदी लोगों के लिए एक रहस्मयी लड़की के रूप में जानी जाती है...मगर दीदी है बहुत प्यारी...काम बहुत करती है..और सबका का ख्याल रखने वाली लड़की...मगर कुछ आदतें दीदी की सच में सही नहीं थी...क्योंकि वो एक्सटा केयर करनेवाली है...जिसके कारण लोग ये सोच में पड़ जाते है कि क्या ये सच में केयर कर रही है या दिखावा है...क्योंकि आज के समय में कोई भी इतना केयर करनेवाली लड़की हो सकती है क्या..मगर दीदी है बेहद प्यारी...आशुतोष...महुआ का पहला लड़का दोस्त..जिससे ज्यादा वक्त झगड़ते हुए ही बीता...कितनी बार बातचीत बंद हुई..फिर शुरू हुआ...आशुतोष मुझे कभी समझ में नहीं आया..की वो मुझे लेके क्या सोचता है..पता नहीं आगे का साथ इसके साथ कैसा होगा...विकास सिंह...ये भी मेरे दोस्त रहे...और ये हमेशा मेरे साथ फ्लट करने की कोशिश की...दिल की सारी बातें मेरे साथ शेयर किया बिना छुपाये...इनकी बहुत सारी कोशिशें महुआ में नाकामयाब हुई..मगर फिर भी कभी हार नहीं माना...और भी बहुत सारे नाम जिनमें सुभाष सर,राजकुमार सर, सच्चू सर, शामिल है जो टेक्निकल डिपार्मेंट के थे..मेरे यादों में शामिल है...और वर्तमान में भी मेरे साथ रहेंगे...हालांकी इन सालों में बहुत सारे नाम मेरे साथ जुड़े...पर यहां मैं उनका जिक्र नहीं करना चाहुंगी..क्योंकि मैं उन्हें याद नहीं कर सकती...या यू कहिए की कभी वो मेरे यादों में भी नहीं आएंगे...महुआ न्यूज़ के कुछ नाम हमेशा साथ रहेंगे...कुछ यादों के पन्नों में समा जाएंगे...

महुआ न्यूज़ के ढाई साल बेहद ही प्यारा गुजरा, मगर मीडिया की भाषा में सत्ता परिवर्तन होते ही...यानी पुराने बॉस के जाने के बाद उच्चे पदों पर नये लोगों का आना...सही में महुआ के पुराने लोगों के लिए एक बेहद ही भयानक सच था...क्योंकि इनकी नजरों में पुराने लोग कुड़े थे...जिन्हें कुछ नहीं आता था...सच तो ये था कि ये लोग पुराने लोगों को हटा कर अपने लोगों को लाना चाहते थे...और ये मीडिया की सच्चाई है...क्योंकि बड़े पदों पर विराजमान लोग अपने आसपास को अपनों से घेरा बना कर रहना चाहते है..चापलूसों का झुंड बनाकर रहना चाहते है ताकि उनपर कोई हमला ना कर सके...महुआ न्यूज से पुराने लोगों को हटाकर नये लोगों को रखने का सिलसिला शुरू हुआ...मुझे उसवक्त बेहद ही बुरा लगता जब ये कहा जाता कि पुराने लोग कुड़े हैं..बाल बच्चों वाले लोग चुपचाप इनकी बातें सुनते क्योंकि बेरोजगारी किसी को अच्छी नहीं लगती...घर चलाने की जिम्मेदारी सभी के मुंह को बंद करके रखा हुआ है...क्योंकि बड़ों की बातों का जवाब देना यानी अपनी नौकरी से हाथ धोना...मगर शायद मैं ऐसा नहीं कर सकी..जिसके कारण नये बॉस के साथ नहीं बनी...मैं एक ऐसी लड़की जिससे आप दिन भर रात भर काम कर सकती है..मगर मुझे अपना स्थान चाहिए...अगर जहां मेरा स्वाभिमान को चोट पहुंची वहां मैं कतई नहीं काम कर सकती थी...हालांकी सैलरी भी बहुत मैटर कर रही थी...क्योंकि तीन साल गुजर जाने के बाद भी मै बेहद ही कम सैलरी पर काम कर रही थी..नये बॉस का बर्ताव मेरे प्रति बेहद ही बेगाना था...हक की आवाज उठाने की बात करने वाले हक को दबाने में लग गये थे...कुछ बातें यहां जिक्र नहीं कर सकती मगर...फिर भी सत्ता परिवर्तन के कुछ महीने मेरे लिए बेहद ही खराब रहे...जिससे देखते हुए मैंने इस्तीफा दे दिया...हालांकी अब मेरे सामने एक बार फिर से जॉब की चुनौती खड़ी हो गई है...सच में मीडिया लाइन में जॉब मिलना यानी भगवान का मिलना वो भी तब जब आपका इस लाइन में कोई गॉर्ड फादर ना हो तो...वो भी बड़े पोस्ट पर...मीडिया की सच्चाई दूसरों की हक की बातें करो...मगर अपनी नहीं...लोगों के लिए जुबां खोलों मगर अपने लिए नहीं....जुगाड़, चापलूसी ये दो मंत्र अगर आपके पास है तो फिर आपको चिंता नहीं...वरना भटकते रहिए...या फिर परेशान होकर घर बैठ जाइये..या लाइन चेंज कर लीजिए..या फिर दुकान खोल लीजिए...

1 टिप्पणी:

  1. नीतू जी,नेट पर कुछ खोज रहा था,वो तो मिला नहीं,हां इसी दौरान आंखों के सामने आपके ब्लॉग का पता दिखा,सोचा देखता हूं,देखा तो लगा कि टिप्पणी भी जरूर करनी चाहिए,सो कर रहा हूं,अच्छा और दिलचस्प लेखन,आपके लेख में तारतम्यता है,जो आपके विचारों के साथ अच्छा तालमेल करती हुई पाठकों के सामने प्रभावी लेख प्रस्तुत करती है। विषय अच्छा था,आपके निजी अनुभवों को जानकर अच्छा लगा,लिखती रही,शुभकामनाएं....................

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