शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

राजनीति और हम

कुदरत ने हम इंसानों को एक जैसा बनाया है...मगर हम इंसान इसे जात-पात, धर्म में बांट कर इंसानों का वर्गीकरण कर दिये है..और जिसके बदौलत ही इतनी मारामारी मची हुई है...पांच राज्यों में चुनाव होने को है...और राजनीतिक पार्टियां जात-पात और धर्म के नाम पर अपनी चाले चलना शुरू कर दिये है...कहीं आरक्षण की बात कह कर वोटरों को लुभाया जा रहा है तो कही दलितों को लुभाने की कोशिश की जा रही है...इन सब के बीच एक सवाल हरदम उठता है कि आखिर क्यों राजनीतिक पार्टियों को हम ऐसा करने का मौका देते है...हर बार क्यों राजनीतिक पार्टियां इसी मुद्दे को उठाकर अपना हित साधती है...क्यों हम आधुनिकता का का दंभ भरते हुए भी जात-पात और धर्म का नाम आते ही हमारी मानसिकता बिल्कुल बदल जाती है...कई ऐसे मौके होते है जब इस का भंयकर रूप देखने को मिलता है..ऑनरकिलिंग इसी का एक भयानकर रूप है जहां आये दिन इसके नामपर निर्दोषों निर्मम हत्या कर दि जाती है... जातपात और धर्म का मुद्दा उठाकर लोकतंत्र के पर्व को इतना दूषित कर दिया गया है कि लोग इसके आते डरने लगते है...कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलामन खुर्शीद ने मुसलमानों को 9 फीसदी आरक्षण देने की बात कह कर इस चुनाव में फिर से उस बहस को शुरू कर दिया की कब तक राजनीति पार्टियां धर्म और जात के नाम पर वोटरों को लुभाते रहेंगे...कब ये विकास के नामपर जनता के बीच जाएंगे और जनप्रतिनिधी बनने का दावा करेंगे

राजनीति पार्टियों को छोड़कर अगर मैं इस बहस को आम जनता के बीच लाये तो ये कहना गलत नहीं होगा कि कहीं ना कहीं राजनीति पार्टियों को सय देने में हमारा भी हाथ है...90 से पहले की बात करे तो राजनीति पार्टियां अगर धर्म और जात के नाम पर राजनीति करती थी और आमजनता का इनके साथ सपोर्ट होता था तो इसमें इनकी गलती नहीं कहा जा सकता था...क्योंकि उस समय देश की आधी से ज्यादा आवाम शिक्षित नहीं थी...वो गरीबी और बेरोजगारी दौर से गुजर रही थी...ऐसे में उन्हें जिसका सहारा मिलता दिखाता उसका दामन थामने को तैयार रहते थे भले ही वो सहारा झूठा होता था..वो वादें झूठे होते थे...मगर हम आज 2012 की बात कर रहे है..जहां हमारा देश तरक्की की इतिहास लिख रहा है..जहां हम कुछ सालों बाद खुद तो को विश्व में सबसे ताकतवार देश के रूप में बनने का दावा करने रहे हैं...वहां आज भी राजनीति पार्टियां जातपात और धर्म के नाम पर वोट मांग रही है और हम इसका सपोर्ट कर रहें हैं...जहां देश की आधी से ज्यादा जनसंख्या शिक्षित हो चुकी है..बेरोजगारी दर घट गई है...मगर फिर भी वोट देखते समय हम उम्मीदवार के चरित्र को देखे बगैर उसके कामों को देखे बैगर हम यह देखते हैं कि उम्मीदवार किस पार्टी का है...और पार्टी हिन्दू सपोर्ट करता है या मुसलमानों को...या दलितों का तारनहार है...हम इसके नाम पर वोट देते है...हालांकि हमारे पास से उम्मीदवारों को फेररिस्त बहुत ही छोटी है...जो सच में जनता की भलाई के लिए चुनाव मैदान में उतरते है...ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार निजी हित साधने के लिए चुनाव लड़ते है..ताकी वो पांच सालों में अपनी जेब भर सके अपना रूतबा कायम कर सके...हालांकी पिछले सालों में भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए है..और जनता इस बात को समझने लगी है कि क्या गलत है क्या सही...अन्ना के आंदोलन ने सोये हुए जनता को जगाने की कोशिश तो की है..ये अलग बात है कि देश के कितने प्रतिशत जनता पूरी तरह से नींद से जागे है..मगर ये सही है कि अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़कर जनता को झकझोरा जरूर है..और राजनीतिक पार्टियों पर दबाव तो बनाया है...मगर अब जनता को इस चुनाव में फैसला करना है कि उन्हें किस तरह के उम्मीदवार का चयन करना है..क्योंकि यही वह वक्त है जब हम सही प्रतिनिधी का चुनाव कर देश को एक सही दिशा दे सकते हैं...जिससे इंसान की बेहतरी हो..ना की जातपात और धर्म की ...अगर देश के सारे इंसानो को एकसामान अवसर दिये जाये तो जात और धर्म खत्म हो जायेगा...और इसके लिए सिर्फ चुनाव ही नहीं हम खुद भी बदलना होगा...अपने समाज को बदलना होगा...जातपात और धर्म को परे हटाना होगा...तब ये राजनीतिक पार्टियां खुद ब खुद जातपात और धर्म की राजनीति करना बंद कर देंगे...और तब जाकर बापू का सपना पूरा होगा...रामराज का सपना...समानता का सपना...तरक्की और शांति का सपना...

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