बुधवार, 27 जुलाई 2011

मेरी सोच और ज़िंदगी के पहलू

कहते है कि बदलते रंगों से सजी होती है ज़िंदगी ...सुख-दुख...मिलन-ज़ुदाई...हर रंगों के से ज़िंदगी का हर लम्हा सजता रहता है...हम इन सब बातों को समझते है जानते है..फिर भी ना जाने क्यों इस बात को नकारा करते हैं...जब हम किसी से मिलते है उसे अपना मानते है...उसके साथ ज़िंदगी के हर पल..हर लम्हों को जीना चाहते है...उसके कदमों के साथ खुद कदम मिलाकर चलना चाहते है...जब हम वो मिलन के लम्हें को जीते हैं.. तो ना चाहते हुए भी कई ख्वाब अपने आप बुन जाते है...या यूं कहे कि हकीकत से आंखे मूंदे हम चाहत कई लम्हों को जोड़ते हुए सपनों का आशियाना बना लेते है...और उसे आने वालें कल में पूरा होते देखने का एक और ख्बाव बुन लेते है...अजीब दिल और दिमाग होता है...सपने होते हैं....हालांकि की दिमाग हर पल यह संकेत देता है कि रूक जाओं...ठहर जाओं...मत देखों ऐसे सपने क्योंकि आनेवाले पलों में ज़ुदाई तुम्हारे रास्तें में खड़ी है...और जब उससे तुम्हारा समाना होगा तो..तुम टूट जाओगे...बिखर जाओगे....तुम्हारें सपनों से बुने आशियाने के हर तिनका ऐसे बिखरेगा जिसे तुम शायद ही अपने आने वाले कल में समेट पाओं...शायद ही तुम फिर से एक ख्वाब बुन सको...पर बावरा मन मानता ही नहीं...और मिलन के पलों में सपनों को बुनने का सिलसिला चालू रखता है.
लेकिन जब हकीकत समाने आते हैं या यूं कहिए हकीकत से जब हम रूबरू होते है...ज़ुदाई के उन लम्हों से जब सामना होता है...तो यकीन मानिए...आपके पास शब्द नहीं होते उस दर्द को बया करने के लिए...ऐसा दर्द जो आपके आत्मा को झकझोर कर रख देता है...ऐसा दर्द जो आपकों मौत को गले लगाने पर मजबूर कर देती है...लोग कहते है कि वो लोग खुदकुशी करते है...जो कमजोर होते है...मगर उस वक्त दर्द ऐसा होता है जहां आप ना तो कुछ समझ सकते है और ना ही बयां कर सकते है...आपके जीने का सहारा ही छिन जाता है...आपके जीने का मकसद ही खत्म हो जाता है...मेरा ऐसा नहीं कहना है कि जब हमारे सपने टूटे या पूरे ना हो तो हमे जिंदगी से हार मान लेनी चाहिए...और मौते के आगोश में चले जाना चाहिए...मैं तो बस उस वक्त के उस दर्द की बात कर रही हूं...जो उस वक्त एक इंसान महूसस करता है...उस एहसास की बात कर रही हूं..जहां आपके दर्द की तासीर चरम पर होती है...आज जब मैं अपने आस-पास देखती हूं...या जब मैं खुद को देखती हूं...तो लगता है कि हम क्या जी रहे है...मेरे आस-पास मेरे हमउम्र में से 90 फीसदी ऐसे लोग है जो इस मिलन और जुदाई के बीच झूल रहे हैं...उम्र के जिस पड़ाव में हम पहुंचे है वो ज़िंदगी को सेटल या यू कहें एक स्थायित्व देने के चाहत होती है...और हम अपने मिलन को मंजिल बनाने के लिए हाथ बढ़ाते है...मगर समाज की मजबूरी, मां-बाप की मजबूरी...या फिर उस इंसान की मजबूरी जिसके साथ आपने जिंदगी जीने के सपने बुन लिये है..उसकी मजबूरी...आपको उस ज़ुदाई के लम्हों को जीने के लिए मजबूर कर देती है...सबकी मजबूरी मिलकर आपकों उस मजबूरी में पूरी ज़िंदगी जीने को मजबूर कर देती है...एक खालीपन वाली ज़िंदगी...एक समझौते वाली ज़िंदगी...यानी की इस मिलन और ज़ुदाई में आपकी ज़िंदगी के आनेवाले पल बिना रंग के हो जाते हैं...अगर आप मिलन-ज़ुदाई वाली सच्चाई का सामना कर चुके होते हैं तो फिर आपके आने वाले पल बिना रंगों के हो जाता है जहां किसी का होना ना होना कोई अहमियत नहीं रखता है.
कई लोगों को मेरी बात से आपत्ति होगी...लोग कहेंगे कि क्यों... हम अपनी ज़िंदगी को निरस और खालीपन से सजने देंगे..जिंदगी बदलने का नाम है और वक्त हर जख्म का मरहम होती है...धीरे-धीरे उस दर्द की तासीर कम हो जाएंगी...और फिर जीवन में एक और नया रंग आयेगा...नई खुशियों के साथ...हो सकता ऐसा हो...मगर वो तब होगा जब आपके पहले वाले मिलन और ज़ुदाई की शिद्दत अपने चरम स्थिति पर नहीं होती...जब आप प्यार के चरम स्थिति यानी आपका प्यार आपकी आत्मा हो जाती है...और फिर आत्मा से ज़ुदाई...आपकी ज़िंदगी की हर वो शोखी को साथ लेकर चली जाती है...और आपको एक दर्द के समुंद्र में छोड़कर चली जाती है...हम कुछ रिश्तों के खातिर जीते तो जरूर है...और खुश रहने का दिखावा भी करते है...खुद के अंदर दिखावा नहीं कर सकते...खुद से झूठ नहीं बोल सकते…ये मेरी खुद की राय है खुद के विचार है जिसे मैंने जीया है जिसे अपने आसपास लोगों को जीते हुए देख रही हूं उस बुनियाद पर ये लिखी हूं..यहां मैं किसी के विचारों को गलत नहीं कहूंगी जो ये कहते है कि जिंदगी के हर पल को जीना चाहिए चाहें वो दुख के हो या सुख के ...ना ही उन विचार को जो यह कहते है कि जिंदगी आपकी नहीं है वो आपके पास अमानत है और आपको उसे संभाल के रखना चाहिए...जिंदगी आपको वो खुद ब खुद दे देगी जिसके आप हकदार है...और ना ही उन लोगों को जो दर्द ना बर्दाश करते और जिंदगी को अलविदा कर देते है...हर इंसान को ज़िंदगी के बारे में सोचने का उसे देखने का अपना नजरिया होता है...मेरी यह लेखन सचाई की एक तस्वीर जरूर है...मगर मैं इस लेख द्वारा किसी को कुछ बताना नहीं चाहती हूं...बस दिल में कुछ था जिसे उकेरने का मन किया...बस उकेर दिया...और इसे कहीं सजाने का दिल किया तो सजा दिया वहां जहां मैं अपने शब्दों को सजाती हूं और संग्रहीत करती हूं.

2 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन एक रिश्ते के खत्म हो जाने से जिंदगी से नाता तो नहीं तोड़ा जा सकता...हां वो पल जरूर दर्द देते हैं...लेकिन इस दर्द का भी अपना अलग मजा है...जिंदगी जीयो...और खुल कर जीयो..ताकि दूसरों के मन में जलन हो...कि क्यों ये इतना खुश है...

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  2. हम दूसरों को दिखाने के लिए खुल कर जीने का नाटक कर सकते है दोस्त मगर...खुद से कैसे झूठ बोले...मैं ये नहीं कह रही कि अपने दर्द को दिखाओं...मगर खुद को उस सच्चाई से दूर मत करो...जिंदगी सच में बहुत रहस्मयी है.

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