सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

मीनार बन बैठे

कभी शौक रखते थे
चूमने की चौखट मेरी
बादलों से क्या दोस्ती हुई
मीनार बन बैठे
पेश करते मोहब्बत निगाहों से जो
यक़ीं वफ़ा का दिलाते अपनी आहों से वो
मेरी सांसों में चाहत की खुश्बू बसाकर
अब गैर की गुलशन का बहार बन बैठे
बादलों से क्या दोस्ती हुई
मीनार बन बैठे
उन्हें पाकर ख़्वाबों ने करवट थी बदली
किनारों से आवाज़ आने लगी थी
कि किश्ती डुबो कर अरमानों की मेरी
नये दिल में जा वो पतवार बन बैठे
बादलों से क्या दोस्ती हुई
मीनार बन बैठे

2 टिप्‍पणियां:

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  2. दूसरी कश्ती भी डुबेगी ही हौसला रखिए...बहुत सुंदर, दिल से।

    कृप्या वर्ड वेरिफिकेशन को हटा दें टिप्पणी देने में असुविधा होती है।

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