शनिवार, 19 जून 2010

पहली बार

सुबह की खिली धूप में श्माया घर से बाहर टहलने के लिए निकली। खिली धूप…ठंडी हवाएं..फूलों का मिलन आज श्यामा को अच्छी नहीं लग रही थी। श्यामा जिसे ऐसी सुबह सबसे प्यारी लगती थी..पर पता नहीं श्यामा को आज क्या हो गया कि उसे ये चीजे नहीं भा रही है। विचारों में लीन श्यामा के पैर खुद-ब-खुद चले जा रहे है। श्यामा को आज क्या हो गया या उसने मुझे प्यार से छूआ भी नहीं...दो फूल आपस में बात कर रहें है..जिन्हें श्माया हर सुबह प्यार से छूती थी। श्यामा की उदासी देख सारे नज़ारे दुखी हो रहे थे। हंसमुख श्यामा...जो दिन भर खिलखिलाती रहती है...ज़िंदगी जीने की ऐसी कला की किसी को भी रश्क हो जाये। 14 सालों से ये लड़की घर की लाडली है...हर कोई श्यामा की हंसी को देखते ही सारे ग़म भूल जाते हैं। घर में श्यामा की हंसी न गूंजे तो घरवाले परेशान हो जाते है। श्यामा बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप है..सावला रंग पर ये रंग भी श्यामा की खूबसूरती को कम नहीं कर पाया है...श्यामा की हिरणी जैसी बड़ी-बड़ी आंखे किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। मदमाती आंखो से ही श्यामा के कई काम हो जाते है...श्यामा की आंखे उसकी आवाज की भूमिका कभी-कभी निभाती मसलन श्यामा जब गुस्सा होती थी तो घरवाले, दोस्त सभी उसकी आंखों से समझ लेते थे कि वो गुस्सा है...क्योंकि श्याम गुस्से में कुछ बोलना पंसद नहीं करती थी। श्यामा की आंखे ही नहीं उसकी पतली लम्बी नाक...गुलाबी के होठ श्यामा की आभा को चौगुनी करती है। शरीर की बात करे तो 14 साल की श्यामा एक मदमाती युवती से कम नहीं थी..श्यामा का बदन जवानी दहलीज़ को छूने लगा था...। बचपन की छटा खत्म होते जवानी की दहलीज़ पर पहुंते ही श्यामा को कुछ अलग अनुभव से गुजरना पड़ रहा था..जो स्त्री को आशिर्वाद और अभिशाप के तौर पर मिला था। वंश को बढ़ाने लिए जरूरी है इस तौर पर इसे आशिर्वाद के रूप में लिया जाता है तो लड़कियां जिन्हें हर महिने इस कष्ट से गुजरना पड़ता है तो इसे अभिशाप के तौर पर लेती है। श्यामा भी इन दिनों इसी दौर से गुजर रही है...और सुबह टहलते हुए यही सोच रही है कि ये क्या है..क्यों है...किस लिए है। आज पहली बार घर में श्यामा को लेकर लोगो के नजरिया में बदलाव आया है...श्यामा इसे लेकर परेशान है...आखिर क्यों मम्मी ने किचेन में उसे जाने से मना कर दिया, क्यों दादी जी उसके साथ खाने से इंकार कर दी...मां ने पहली बार उसे अलग बिस्तर दिया सोने के लिए...क्यों नहीं वो आज अपने साथ मुझे सुलाया। इन तमाम तरह के सवालों से परेशान श्यामा जिसे सुबह की पहली किरण सबसे प्यारी लगती थी...आज वो उसे अच्छी नहीं लग रही थी। जो पौधे उसे जान से प्यारे है जिन्हें हर सुबह आकर प्यार से सहलाती थी...उनसे बाते करती थी आज उनकों पानी तक नहीं डाला उसने पर सोच में डूबी हुई थी। वो बार-बार भगवान को इसके लिए दोष दे रही है।श्यामा को घूमने में मन नहीं लग रहा था इसकारण वो घर के अंदर आ गई। तभी मां ने श्यामा को आवाज़ लगाया...श्यामा मां के पास गई...तो मां ने कहा बेटा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है...तुम पहले नहा लो । श्यामा को कोई भी काम करने का दिल नहीं कर रहा था...मां क्या नहाना जरूरी है..मैं बाद में नहा लूंगी...नहीं श्यामा पहले तुम नहा लो। श्यामा नहाने चली गई। परेशान श्यामा मां के पास आकर बोलती है..मां क्या ये हर महिनें मुझे परेशान करेगा। मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। बेटा आप लड़की हो और हर लड़की को इस परिस्थिति से गुजरना पड़ता है..आपको इसकी आदत हो जायेगी और जब आप बड़ी होगी तो इसकी अहमियत पता चलेगी। श्यामा की मां उसे प्यार से बहुत सारी बाते समझाती है। पूरे दिन श्यामा के कानों में आवाज़ गूंजती रही कि तुम बड़ी हो गई हो।
क्रमश:

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