शुक्रवार, 14 मई 2010

कैसे जिएगी निरूपमा ?


निरूपमा...कुछ सपने लेकर दिल्ली आई थी। मीडिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने की ख्वाहिश के साथ और लोगो को इंसाफ दिलाने की मकसद से इस यहां आई थी।जीने का ऐसा अंदाज की ज़िदगी भी रश्क करने लगे। भाग्य का करिश्मा देखिए कि दूसरे की आवाज़ बनने वाली निरूपमा की आवाज़ को उसके घरवालों ने ही दबा दिया। निरूपमा की ग़लती सिर्फ इतनी थी कि उसने समाज के बनाये दकियानुसी क़ानूनो से परे जाकर एक ऐसे लड़के से प्यार किया जो उसकी जाति का नहीं था। “भाई निरूपमा की इतनी हिम्मत की वो समाज के नियमों का पालन न करे ...इसकी तो सज़ा मिलनी ही थी...जन्म देने वाले ही आपने नाक को ऊंची रखने के लिए ही उसकी सांसों को बड़ी बेरहमी से दबा दिया।“ अगर एक तरफ ये भी माना लिया जाय कि निरूपमा ने आत्महत्या की तो उसके आत्महत्या के पीछे की वजह उसके जन्मदाता नहीं थे जो निरूपमा के प्यार को स्वीकार नहीं करना चाहते थे।
प्रश्न ये है कि कब तक निरूपमा को ऐसी सज़ा मिलती रहेंगी....कब तक निरूपमा अपने सपनों को पूरा किये बैगर इस दुनिया से रूख़्सत हो जायेगी। जाति-धर्म का ये भेदभाव न जाने कितने निरूपमा की बलि चढ़ायेगी। एक ओर हमारा समाज लड़कियों को बोझ मानता है....दहेज न दे पाने की एवज में बाप अपनी बेटी के क़त्ल करने से भी नहीं चुकता।ग़रीबी के हालात में अगर दो तीन बेटियां घर में हो तो बाप चिंता में डूब जाता है कि इसकी शादी कैसे होगी। बेटियों को कोसता रहता है और जब घऱ की लाडली अपनी ज़िदगी ख़ुद के वजूद के साथ जीना चाहती है तो ये भी परिवार वालों को समाज को नागवार गुजरती है। ऑनर किलिंग के नाम पर आए दिन मासूम जिंदगियों को... जो जीना चाहती है अपने सपनों के साथ... उन्हें इससे ज़ुदा कर दिया जा रहा है। बिहार, यूपी दो ऐसी जगह है जहां पर लड़कियों को बोझ समझा जाता है...जहां लड़की के पैदा होते ही दहेज की चिंता सताने लगती है...लड़की जैसे ही दुनियादारी समझने लगती है...उसे अपने ही अस्तित्व पर शक होने लगता है। घर में परायों की तरह व्यवहार किये जाते है...मां-बाप को अपनी शादी के लिए चिंतित देखती है तो उसके दिल पर क्या बीतती है...ये सिर्फ लड़की ही समझ सकती है। अगर वो घर से बाहर निकलती है...और अपने पैरो पर खड़ी होकर ख़ुद के लिए कुछ सपने संजोती है और मां –बाप को दहेज देने से चिंता मुक्त करना चाहती है तो इस में भी समाज और परिवार को प्रॉब्लम होती है। कहने को तो हमारा समाज आधुनिक होता जा रहा है...लड़कियों को पढ़ने के लिए बाहर भेज देते है....शिक्षा मुहईया करवा रहे...पर एक चीज जहां पर वो मार खा जाते है कि वो अपनी बेटी को अपने जीवन साथी चुनने का आधिकार नहीं दे पाते है....क्या हमने ग़ौर किया है कि जो मां-बाप अपनी लाडली को पढ़ने के लिए बाहर भेज देते है...पर कुछ अधिकारों से वंचित करके रखते है उसेक पीछे कारण क्या है।
मां-बाप अपने बेटे-बेटियों की खुशी चाहते है...पर उनकी वो खुशी वो बर्दाश नहीं कर पाते जिनमें उनकी नाक कटती हो। हम हर बार समाज की दुहाई देकर निकल जाते है कि ये समाज की बनाई हुई परंपरा है....इसको नहीं मिटाया जा सकता है। माता-पिता की दलील होती है...कि वो समाज में मुंह नहीं दिखा सकते है। आख़िर समाज का निर्माण कौन करता है...समाज को कौन बनाता है...आप और हम ही तो इसे बनाते है...पर कौन से लोग आप पर अंगुली उठायेंगे। हर इंसान चाहता है कि भगत सिंह पैदा हो...पर वो हमारे घरों में न पैदा होकर पड़ोसी में पैदा ले। क्रांति सभी चाहते है पर क्रांतिकारी अपने घर में नहीं पैदा करना चाहते है। अगर ये सोच नहीं बदली तो फिर कभी इस देश में वो स्थिति नहीं आ सकती कि निरूपमा ख़ुद अपना घर बसा सके...ख़ुद अपने पसंद के लड़के से शादी कर सके। निरूपमा जैसी लड़कियों को आये दिन ऐसी ही ऑनर के नाम पर मौत के गोद में सुलाते रहेंगे।
जब तक समाज के हर घर में नहीं पैदा होगी क्रांति
तब तक नहीं बदलेगा समाज
ऐसे ही मासूमों की जाती रहेंगी जान
ऐसे ही निरूपमा के सपनों का होगा अंतिम संस्कार

9 टिप्‍पणियां:

  1. किस तरह की क्रांति चाहतीं हैं आप और किस तरह की क्रांति करना चाहती थी आपकी निरुपमा?
    बिना विवाह के माँ बनकर? यही न्याय दिलाने का कदम था....कुछ कर गुजरने का प्रश्न था.....?????
    सवालों के साथ गहराई को समझें बिना बात के इस मुद्दे को स्त्री-पुरुष की आँखों से ना देखें...
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  2. sahi hai desh azaad ho gaya par iska matlab ye nahi ki yuva peedhi ucchrunkhal ho jaaye...main bhi sweekarta hun jo hua galat hua...abhibhavko aur bachcho ke beech ka communication gap hatana padega...tabhi samasya suljhegi...

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  3. इस शिक्षा और जागरूकता को लानत है जिसने एक अनचाहा गर्भ और और उस अबोध अजन्मे की बलि दी -करामाती गोली के ५० वर्ष के बाद की यह तस्वीर है और वह भी राजधानी की एक मीडिया कर्मी बाला की !भावी निरुपाय माएं कम से कम इससे सबक लें .....

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  4. क्या सचमुच ही निरूपमा इतनी निरीह थी जितनी कि आपने बताया , क्या सच में ही उसमें अपने मां बाप के विरूद्ध जाकर विवाह करने का साहस नहीं था , यदि सच में ऐसा ही था तो फ़िर देश की अग्रणी संस्था में घर परिवार से दूर राजधानी में रहते हुए उसने कैसे अपने सहपाठी को न सिर्फ़ अपना जीवन साथी चुना बल्कि उससे एक संतान भी पा ली अपनी कोख में । वास्तविकता तो ये है कि आज प्रेम को जिस रूप में परिभाषित किया जा रहा है ये सब उसी के कुपरिणाम हैं । समाज को सिरे से सोचना होगा कि जाना किधर है ? और ये तय करेगी हमारी आपकी सोच , जिसका पलडा भारी , वही संचालक प्रवृत्ति बनेगी आगे ..

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  5. निरूपमा बिना ब्याही मां बन गई...ये ग़लत क्यों है...क्या गले में मंगल सूत्र डालना...और मांग में सिंदूर भरने के बाद ही महिलाओं को मां बनने का अधिकार है। मुझे पता है...कि आज निरूपमा का केस अगर कमजोर हुई है तो इसके पीछे कारण सिर्फ ये है कि शादी से वो मां बनने वाली थी..निरूपमा से ग़लती यहीं पर हुई। अगर निरूपमा की मौत तब होती जब वो मां नहीं बनने वाली होती...सिर्फ दूसरी जाति से प्यार करने के नाम पर उसे मार दिया जाता तो ये केस और मजबूत हो सकता था। यहां मेरा कहना है कि निरूपमा की निजी ज़िदगी जैसी भी हो...पर एक लड़की की मौत हुई है उसके सपनों की मौत हुई है क्या उसे इंसाफ नहीं मिलना चाहिए। आप तमाम लोगो को शुक्रिया अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए लेकिन यहां बात एक निरूपमा की नहीं हो रही है...उन तमाम लड़कियों की बात हो रही है जिसे निरूपमा की तरह सपनों को खिलने से पहले ही मार दिया जाता है चाहे वो अजन्मी लड़की हो...चाहे दहेज न दे पाने को लड़की की मौत हो...चाहे दूसरे जाति से प्यार करने वाली लड़की की मौत हो।
    धन्यवाद

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  6. Sabse pehle mujhe un logon se ye sawal poochna hai ki wo log tab kahan hote hain jab chalti bus mein ladkiyan chedi jaati hain? Ye log tab kahan hote hain jab ling parikshan kar paida hone se pehle hi ladki ko maar dala jaata hai? Sanskaron ki duhayi sirf ladki ke matthe kyun? Kya ek ladki ka dosh sirf itan hai ki woh maa ban sakti hai? Mera namra nivedan hain un logon se jo moral policing karte hain, ki yaad trahe ye log kisi ped se ya khet se nahi aaye balki ek aurat ka hissa rahein hain. Jab aap yeh baat yaad rakhenge to prakriti ke sabse bade vardaan ko naari ka abhishaap nahi maanenge!

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  7. Sabse pehle mujhe un logon se ye sawal poochna hai ki wo log tab kahan hote hain jab chalti bus mein ladkiyan chedi jaati hain? Ye log tab kahan hote hain jab ling parikshan kar paida hone se pehle hi ladki ko maar dala jaata hai? Sanskaron ki duhayi sirf ladki ke matthe kyun? Kya ek ladki ka dosh sirf itan hai ki woh maa ban sakti hai? Mera namra nivedan hain un logon se jo moral policing karte hain, ki yaad rahe ye log kisi ped se ya khet se nahi aaye balki ek aurat ka hissa rahein hain. Jab aap yeh baat yaad rakhenge to prakriti ke sabse bade vardaan ko naari ka abhishaap nahi maanenge!

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  8. बहुत अच्छा कहा आपने....ये उस समाज के लिए प्रश्न है जो सिर्फ बाते बनाना जानते है।

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  9. madam apko ye pata nahi ki iss story ke andar me kya hai...agar pata hota to sayed apki mansikta badal jati.....

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