बुधवार, 10 मार्च 2010

कसप से सवाल


(मैं ने अभी हाल में मनोहर श्याम जोशी की कसप पढ़ी। पहले मैं साहित्यिक क़िताबों से उतनी रूबरू नहीं थी...पर अब मुझे मौका मिल रहा है इनसे मुख़ातीब होने का। कुछ महान लेखकों की रचनाओं को पढ़ा और उनमें से कुछ ऐसा पाया जिसका पता तो था पर इतने गहरे ढंग से नहीं। वैसे मुझे प्रेम संबंधित रचनाएं पढ़ने में अच्छा लगता है।गुनाहों का देवता और कसप में प्रेम को बहुत ही गहरे ढंग से प्रस्तुत किया गया है...मैं यह नहीं कह रही हूं कि और रचानाओं में इसकी अभिव्यवक्ति गहरे रूप से नहीं की गई होगी...पर मैं अभी उन रचानाओं से ताल्लुक नहीं रख पाई हूं, हो सकता है कि और किताबों में इसकी यानी प्रेम की प्रस्तुति और भी प्रभावी रूप से कि गई हो। फिलहाल मैं अभी हाल में पढ़ी कसप का जिक्र करना चाहूंगी।)

कसप कहानी उतराचंल के एक गांव से जुड़े़ अनाथ, साहित्य सिनेमा प्रेमी, मूडियल लड़के देवीदत्त यानि डीडी और शास्त्रियों की सिरचढ़ी, खिलन्दड़ और दबंग लड़की बेबी के प्रेमकहानी की है। अपने रिश्तेदार की शादी में ये दोनो मिलते है और इनका मिलना किसी प्यार भरे पृष्ठभूमी के साथ नहीं बल्कि प्रथम मुलाक़ात की बेला में कथानायक शौच में बैठा होता है और नायिका उसे देखकर हंसती है। कथानायक और कथानायकी की पहली संवाद भी चांद सितारों वाली बात से शुरू नहीं होती बल्कि मारगांठ (पैजामे में लगी दोहरी गांठ) के जिक्र के साथ होती है जो अस्थायी शौच में उसे देखकर हड़बडाकर उठने से लगी थी। मनोहर श्याम जोशी ने कथानायक और नायिका की मुलाक़ात विचित्र तरीके से करावाया है और साथ में बहुत ही पढ़ने में जटील पर सरल प्रेम कहानी की रचाना की है। प्यार में कैसे एक बिगड़ी लड़की बेबी जो प्यार को समझती नहीं थी पर घरवालों की टोका-टोकी ने उसमें प्यार का जज्बात पैदा किया।प्यार में लिप्त बेबी खुद को बदलने लगी और प्यार के चले जाने पर ऐसी बदली और उसका बदलाव पॉजिटीव था न कि निगेटीव ।बेबी के प्यार में समर्पण था पर शर्त थी और उस शर्त ने बेबी को उसके प्यार से दूर कर दिया और देवीदत्त यानी की डीडी के प्यार में पाने की चाहत थी पर खुद को किसी मुकाम पर पहुंचाने के बाद और यहीं कारण दोनों के प्यार से जुदा किया।
वैसे दोस्तों मुझे कसप की पूरी कहानी यहां नहीं बताना है कसप पढ़ने या यू कहिए तो महान लेखकों की कुछ प्रेम कहानियां जैसे गुनाहों का देवता पढ़ने के बाद एक सवाल ये उभरा कि क्या प्रेम की परिणीत विरह ही होती है। क्या प्रेम का कभी मिलन नहीं होता। मैंने कभी किसी के द्वारा लिखी एक लाइन पढ़ी थी कि जिस प्यार में मिलन हो जाता है वो प्यार ...प्यार नहीं रह जाता वहां प्यार की समाप्ति हो जाती है। क्या ऐसा होता है ? जो प्रेमी युग्ल शादी के बंधन में बंध जाते है उनके प्रेम का अंत हो जाता है...वैसे अगर देखा जाए तो कुछ हद तक ये समाप्त होता हुआ दिखता है अगर हम आज के परिवेश में प्रेम को मंजिल पर पहुंचने के बाद की स्थिति को देखते है तो पाते है कि जीवन में उसके प्रति कोई लगाव ही नहीं रह गया, शादी से पहले वाला प्रेम कहीं गुम हो जाता है। सच ही कहां गया है कि जब कोई वस्तु मिल जाती है तो उसकी अहमियत घट जाती है। वस्तु की अहमियत तभी तक होती है जबतक वो हमसे दूर रहता हैं। कुछ लोगों मेरी इस बात से असहमत होगें कि अगर प्यार है तो हमेशा रहेंगा, अगर प्यार सिर्फ पाने की चाहत हो तो पा लेने के बाद तो वो खत्म होगा ही।साहित्यों में प्रेम कहानियों में मिलन नहीं होती, क्योंकि विरह के दर्द की तासीर सबसे ज्यादा होती है, और इसी को भुनाने में साहित्यकार लगे होते है।
कसप में लिखी प्रेम कहानी का कुछ अंश हमारे ज़िदगी में गुजरे कुछ पलों के साथ जुड़ा हुआ लगता है और इसे पढ़ने के दौरान लगता है कि इसके कुछ पल में कथानायक या फिर कथानायिका की भूमिका में वो वहां मौजूद है।
दोस्तों प्यार की परिणीत ज़ुदाई ही क्यों होती है इसका सवाल आजतक मुझे नहीं मिल पाई है...क्या आप इसका कारण बताएंगे.....

1 टिप्पणी:

  1. कसप मेरी भी पसंदीदा किताबों मे से एक है...हर प्यार की परिणीति तो जुदाई नहीं होती...हाँ, मगर ऐसी कहानियाँ याद रह जाती हैं.

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