शनिवार, 18 सितंबर 2010

आगे की ज़िंदगी


अंजली अपनी ज़िंदगी में उलझती जा रही थी...समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे...न चाहते हुए भी आगे बढ़ती जा रही थी...कभी-कभी अंजली को लगता कि वो सबकुछ छोड़कर कर कहीं चली जाएं...इतनी दूर जहां न कोई चाहत, न कोई उम्मीद और न कोई ख्वाहीश...बस खुद से मतलब। अंजली की मनोस्थिति बिगड़ती जा रही थी। उलझनों में उलझी अंजली की ज़िंदगी में बस सुबह-शाम एक जैसी होने लगी थी...कभी कोई सुबह उसे बेहद अच्छा लगता तो कभी उदासी लेकर आता...कभी चेहरे पर खुशी होती तो कभी चेहरे पर एक अज़ीब सा तंज़ । अंजली खुद सोचती की आखिर ऐसा क्यों है...क्यों एक ऐसी लड़की जो ज़िंदादिल थी, जिसे कोई परवाह नहीं था और न ही किसी से शिकायत वो अब सिर्फ शिकायत रखने लगी थी...खुद से और जो उससे जुड़े हुए थे उनसे भी। अंजली इस बात से रूबरू थी कि वो बेवजह का गुस्सा और शिकायत करती है..और ये ग़लत है, बहुत कोशिश करती कि वो ख़ुद पर काबू करे पर नहीं कर पाती थी...हर छोटी-छोटी बेवजह की बातों पर वो चिढ़ जाती, गुस्सा कर जाती। अंजली में एक और परिवर्तन यह हुआ कि जो लड़की एक बार कोई प्रतिज्ञा कर लेती थी, जिससे पूरा करने के लिए वो जी-जान से जुट जाती थी...जो बहुत आत्मविश्वासी थी खुद पर पूरा विश्वास था उसे...वो सारी चीज़े उससे दूर हो गयी थी, किसी भी तरह के प्रतिज्ञा को वो पूरा नहीं कर पा रही थी।
यानी पहले की अंजली और अब की अंजली बिल्कुल ज़ुदा हो गयी थी।
क्रमश:

1 टिप्पणी:

  1. BHALE HI PAHLE KI ANJALI AB KI ANJALI SE JUDA HO GAYI HAI...LEKIN HAI TO AKHIRKAR WO ANJALI HI NA. ANJALI TO ANJALI HI RAHEGI..KUCHH SAMAY KI BAT HAI.

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