देकर दुहाई ज़माने की

पंख खोला उड़ने को
काट दिए उसके पंख
वास्ता दे ज़माने की
पैदा हुई, खुश हुए जन्मदाता
हुनर सिखाया,लड़ना सिखाया
बात जब आई आजमाने को
बंद कर दिया कमरे के भीतर
देकर दुहाई ज़माने की
टुटना नहीं,गिरना नहीं, झुकना नहीं
ग़लत को ग़लग,सही को सही
कहना सीखाया बचपन से
सच जब बोला,गलत को ग़लत बोला
काट दिए ज़ुबान,शांत कर दिए शब्दों को
कहकर दुस्तर है ज़माने की
शक्ति कहकर बुलाया भी
लक्ष्मी कहकर पूजा भी
पर अबला कहकर दुत्कारा
कन्या कह हत्या भी की
लड़की कह रौंदा भी
मर्यादा कह बंद कर दिया चारदीवारी में
कह कर रीत है दुनिया की
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें