शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

इंतज़ार उन पलों का


आज ज़िंदगी के उस दौर से अंजली गुजर रही है...जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है...खुद को सामान्य रखने की कोशिश में अंजली अपने आप के असली स्वरूप को भूल गई है...हर पल की उदासी उसके चेहरे पर साफ झलकती है...कितना भी वो इसे छुपाने की कोशिश करे ये उदासी उसके चेहरे पर दिख ही जाती है...कभी बिंदास तरीके से ज़िंदगी जीने वाली अंजली आज पूरी तरह से गायब हो चुकी है...हर पल अंजली को बस एक ही चेहरा नज़र आता है..बस एक चेहरा...इस चेहरे की खुशी अंजली की मकसद बन चुका है...मगर अंजली का दुर्भाग्य ऐसा की वो उस चेहरे को खुशी के पल ना देकर उदासी के पल ही दे देती है...अंजली कुछ दिनों की छुट्टी लेकर घर गई कि शायद वो खुद को जज कर सके कि क्या वो उस शख्स से दूर हो सकती है...उसकी सोच से दूर हो सकती है...मगर हुआ उसका उल्टा अंजली उस चेहरे को हरपल मिस करती थी...बात किसी से करती थी और सोच में सिर्फ वो इंसान रहता था...हर वक्त अंजली की नज़र फोन पर लगी होती कि घंटी बजे और दूसरी तरफ से वो आवाज़ आए जिस आवाज़ को सुनकर आत्मा तृप्त हो जाता है...एक दिन रात को घंटी बजी...मगर उस आवाज़ को सुनकर अंजली का कलेजा कांप गया...आवाज़ तो वहीं मगर उसमे में इतना दर्द की...इतनी बेचैनी...अंजली उस आवाज़ को सुनकर बेचैन हो गई...उस शख्स की ज़िंदगी में इतना दर्द है...इतनी उदासी है...वो उदासी और दर्द उस दिन चरम पर पहुंच गई थी...पर कहते है ना किसी के दर्द को हम सुन सकते है...पर कम करने की कोशिश तब तक कामयाब नहीं हो सकती जबतक सामने वाला इसके लिए तैयार ना हो...अंजली बहुत परेशान थी...पर उस इंसान के लिए कुछ नहीं कर सकती थी...क्योंकि ये दर्द सिर्फ उनसे जुड़ी हुई थी...कुछ दिन बाद अंजली की वापसी हुई...और उस चेहरे की उदासी और ग़म को देखकर अंजली बेचैन हो उठी...पर कर क्या सकती थी…मगर उस शख्स ने अपनी उदासी भूलकर अंजली के दामन में कुछ खुशियों भरा पल ज़रूर डाल दिया...और शायद आगे भी कुछ पलों का साथ होगा अंजली का...मगर अंजली ने एक फैसला ली...और वह फैसला यह था...कि वो शख्स अंजली को जो करने को कहेंगा..अंजली उसी रास्ते चलेंगी..क्योंकि उसकी खुशी के लिए अंजली अपनी खुशियों को कुर्बान करने से पीछे कभी नहीं हटेंगी...अंजली के जीवन का ख़्वाब है कि वो शख्स कभी उससे कहें...कि आज मैं बहुत खुश हूं...अब मुझे कोई उदासी नहीं...कोई ग़म नहीं...मैं वो पाया जिसकी मुझे चाहत थी...
पता नहीं अंजली का यह सपना कब पूरा होगा...मगर ऐसी ही खुशी और उदासी के पलों में अंजली की ज़िंदगी का सफर जारी रहेगा॥
राहें मंज़िल का पता नहीं
बस एक ख़्वाब लिए राहों में
मुसाफ़िरे ज़िंदगी है...
थम तो सकते नहीं
समाप्त

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