पुण्य प्रसून बाजपेयी: कोपेनहेगेन, मीडिया और कविता
सर आपके द्वारा लिखा गया....वो पूरी तरह सत्य है, लेकिन जो विकासशील देश विकसीत देशों के
आदेश के आगे घुटने टेक देते थे वो आज अपना स्टेप उठाने खुद उठाने के पक्ष में दिख रहे है....भले ही वो अपने देश के किसानों की हालात न सुधार पा रहे हो..
लेकिन कोपहेगन में झुकने को नहीं तैयार। ये एक नया बयार तो है...उम्मीद की जा सकती है कि पर्यावरण के बचाव में सभी देश अपनी ओर से कोशिश करे..। मीडिया में
होकर मीडिया के हकिकत को सामने लाने के लिए धन्यवाद...बहुत कम ही लोग ऐसा कर पाते है।
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
sahi bat kahi hai apne http://mehtablogspotcom.blogspot.com/ वैसे आप क्या चाहते है भारत की अपनी पहचान हो या भारत इण्डिया बने
जवाब देंहटाएं