

आज़ादी के 62 साल बाद भी अगर ये सुनने को मिलता है कि भूख से लोगों की मौत हो रही है...भूख से लोग मज़बूर हो जा रहें है कि वो अपनी और अपने बच्चों की आह लीला को समाप्त करने से परहेज नहीं कर रहें है। सच भी है भूख ऐसी चीज है...जिसके कारण लोग-लोग हर काम करने पर मजबूर हो जाते है...जब चार दिन से पेट में अनाज नहीं जाएगा तो हाथ गलत कामों को करने के लिए अपने आप ही उठ जाता है चाहें वो जहर को ही अपने मुंह तक ही ले जाना क्यों न हो। बिहार के बांका के सैदपुर गांव में एक महिला मीना ने अपने तीन मासूम बच्चें के साथ जिंदगी को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया। मीना अपने बच्चों के खाली पेट और उनके दर्द को बर्दाश नहीं कर सकी। कुछ खाने को नहीं था तो मीना ने जहर को ही खाना बना कर अपने बच्चों को पेट भरने की कोशिश की और खुद भी बचा जहर खा कर अपने पेट की आग को हमेशा के लिए खत्म कर लिया। ये अकेली मीना की कहानी नहीं मीना जैसे कितने और महिलाएं और पुरूष है जो पेट की आग शांत नहीं कर पाने के कारण आपनी और अपने परिवार की आत्मलीला खत्म कर लेते है या नहीं तो भी चल पड़ते है उन रास्तों जो गुमनामी के अंधेरों की ओर जाता है। कितनी मीना अपने परिवार के पेट पालने के लिए अपने जिस्म का सौदा करने से भी नहीं चूकती, और कितने सामधारी आतंकवादी और नक्सली बनने से परहेज नहीं करते।
कहने को हमारा देश विकसीत देश बनने की डगर पर बढ़ चुका है...क्या यही है विकसीत देश का नक्शा। क्या हम खुद को विकसीत कहने के लिए तैयार है। क्या बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं ही हमें विकसीत बना सकती है। सरकार जो देश को विकसीत करने और गरीबी हटाने की बात करती है। तो क्या है गरीबी हटाने के लिए इनके पास। इतनी सारी योजनाएं चला तो रखी है.....पर क्यों मर रहें है भूख से लोग। अगर हम बिहार की बात करते है....तो नीतीश सरकार सुशासन की बात करते नजर आते है तो क्या यहीं है बिहार में सुशासन जहां मीना की तरह कितनी ही मीना भूख से मौत को गले लगा लेती है। सियासत तो भूख की भी सियासत नहीं करने से चूकती । इस भूख को भी राजनीतिक में उतार कर पार्टियां ओछी सियासत करने में लग जाती है.। गांधी जी का सपना था कि आजादी के बाद भारत का निर्माण ऐसा हो जहां किसी को भी भूखा नहीं सोना पड़े....किसी को भी नंगा नहीं रहना पड़े। बापू ने देशवासियों का तन ढकने के लिए अपना कपड़ा उतार दिये। आज भी बापू का सपना वहीं है जहां से वो सपना देखना शुरू किये थे ....भारत कहने को तो आजाद हो गया है....लेकिन आज भी वो टुकड़े में बटा हुआ है...नेताओं ने इसे अपने फायदे के लिए बांट रखा है। अगर ये नेता देश को एक हो जाने दे तो मीना को लेकर राजनीति कहां से कर सकेंगे। कहां से अपने हित को पूरा कर सकेंगे। मीना को भी जीने की चाह थी...वो भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थी....लेकिन मीना का हौसला तब टूटा जब उसे पूरा समाज टूटता नजर आया। पूरी व्यवस्था में जंगलराज नजर आई। मीना और उसके मौत मुस्कुराती नज़र आती है। सवाल वहीं की वहीं है....क्या सभी मीना और उनके मासूमों का अजाम यहीं लिखा है..। जवाब का इंतजार कल भी था.....और आज भी है....उम्मीद यहीं करती हूं कि भविष्य में इस सवाल का इंतजार नहीं करना पड़े।
कहने को हमारा देश विकसीत देश बनने की डगर पर बढ़ चुका है...क्या यही है विकसीत देश का नक्शा। क्या हम खुद को विकसीत कहने के लिए तैयार है। क्या बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं ही हमें विकसीत बना सकती है। सरकार जो देश को विकसीत करने और गरीबी हटाने की बात करती है। तो क्या है गरीबी हटाने के लिए इनके पास। इतनी सारी योजनाएं चला तो रखी है.....पर क्यों मर रहें है भूख से लोग। अगर हम बिहार की बात करते है....तो नीतीश सरकार सुशासन की बात करते नजर आते है तो क्या यहीं है बिहार में सुशासन जहां मीना की तरह कितनी ही मीना भूख से मौत को गले लगा लेती है। सियासत तो भूख की भी सियासत नहीं करने से चूकती । इस भूख को भी राजनीतिक में उतार कर पार्टियां ओछी सियासत करने में लग जाती है.। गांधी जी का सपना था कि आजादी के बाद भारत का निर्माण ऐसा हो जहां किसी को भी भूखा नहीं सोना पड़े....किसी को भी नंगा नहीं रहना पड़े। बापू ने देशवासियों का तन ढकने के लिए अपना कपड़ा उतार दिये। आज भी बापू का सपना वहीं है जहां से वो सपना देखना शुरू किये थे ....भारत कहने को तो आजाद हो गया है....लेकिन आज भी वो टुकड़े में बटा हुआ है...नेताओं ने इसे अपने फायदे के लिए बांट रखा है। अगर ये नेता देश को एक हो जाने दे तो मीना को लेकर राजनीति कहां से कर सकेंगे। कहां से अपने हित को पूरा कर सकेंगे। मीना को भी जीने की चाह थी...वो भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थी....लेकिन मीना का हौसला तब टूटा जब उसे पूरा समाज टूटता नजर आया। पूरी व्यवस्था में जंगलराज नजर आई। मीना और उसके मौत मुस्कुराती नज़र आती है। सवाल वहीं की वहीं है....क्या सभी मीना और उनके मासूमों का अजाम यहीं लिखा है..। जवाब का इंतजार कल भी था.....और आज भी है....उम्मीद यहीं करती हूं कि भविष्य में इस सवाल का इंतजार नहीं करना पड़े।
बस एक उम्मीद ही की जा सकती है कि हालात सुधरें..उपाय होते तो दिखते नहीं..शायद किसी चमत्कार के इन्तजार में बैठे हैं सब!!!
जवाब देंहटाएंविचारणीय सार्थक आलेख.
आजादी के बाद से अबतक की सारी सियासत भूख की सवारी पर ही तो सवार है और भूखी जनता आज भी बेजार है। विचारणीय प्रश्न।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
nice
जवाब देंहटाएंदेश के जिम्मेदार व्यक्ति जो अपनी राजनिति चमकाने के लिए नित नये हथकड़े अपनाते रह्ते हैं उन्हें अपने व अपने रिश्तेदारों के घर भरने से ही फुर्सत नही है....देश की इस हालत के लिए वहीं जिम्मेवार हैं जिन्होने इसकी बागडोर थाम रखी है।....बहुत दुख होता है ऐसी घटनाओ को देख सुन कर।
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